तेरी ग़ज़लें निरी उदासी है
ज़िंदगी क्या है जी उदासी है
जो तुम्हें खा रही है अंदर से
ऐसी भी कौन सी उदासी है
मेरे सीने में पल रही है जो
दुनिया की आख़िरी उदासी है
ऐसी कुछ शय नहीं थी पहले पहल
मेरे ग़म से बनी उदासी है
ज़िंदगी अब कुछ और नहीं दरकार
मुझे अच्छी भली उदासी है
मुझे क्या लेना देना ख़ुशियों से
मुझे तो हर ख़ुशी उदासी है
शर्म से डूब मरने का है मक़ाम
तेरे होते ख़ुशी उदासी है
अब कोई ग़म भी ग़म नहीं लगता
तेरा ग़म आख़िरी उदासी है
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