नश्तर चुभा कर दिल में वो अब हाल मेरा पूछते
क्यूँ दिख रहा है ख़ून कपड़ों पर ये जुमला पूछते
मुझ को सताने के लिए वो छेद छतरी में करे
मासूम सा चेहरा बना किस ने भिगाया पूछते
मुझ से किनारा कर चले जाते मुझे वो छोड़कर
किसकी गली में घूमते हो वो क़ज़ारा पूछते
इक बार मिलने के लिए ख़त तो किसी और को लिखा
आए नहीं क्यूँ आज तुम मैंने बुलाया पूछते
इक शाम आँधी चल रही थी जोर से चारों तरफ़
जब आम गिरते पेड़ से पत्थर चलाया पूछते
मासूमियत का नाम दूँ या बेवकूफ़ी ही कहूँ
घर में मेरे ही बैठ कर मेरा ठिकाना पूछते
इक बार दिन में सो गए और रात देरी से उठे
मुझसे शिकायत कर के सूरज क्यों छिपाया पूछते
अंजान बन कर वो अनोखी बात हर पल ही करे
अर्जुन यही सोचे कि करते प्यार तो क्या पूछते
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