ये उदासी बढ़ रही फिर याद आए वो ज़माने
बे-क़रारी भी वही फिर याद आए वो ज़माने
दर्द के साए घिरे और रौशनी-ए-तब्'अ जाए
याद-दिलबर आ रही फिर याद आए वो ज़माने
ज़ीस्त को भी हक़ वही जैसे शिगुफ़्ता गुल खिले है
आज माँगे हक़ वही फिर याद आए वो ज़माने
डूबती कश्ती किनारा ढूँढ़ती लहरों में जैसे
वैसी कोशिश मुंतही फिर याद आए वो ज़माने
आज तक सज्दा किया है चाह बढ़ती जा रही है
बात मैंने सच कही फिर याद आए वो ज़माने
वो कमाल-ए-ज़ब्त अब तक तो मुसलसल चल रहा था
हो गए अब मुश्तही फिर याद आए वो ज़माने
वो रिफ़ाक़त वो हक़ीक़त लुत्फ़ उनका याद आए
आरज़ू है अब वही फिर याद आए वो ज़माने
साथ खिलते गुल को देखा रंग दूजे का चुराया
जब दिखी चोरी वही फिर याद आए वो ज़माने
ख़्वाब की उस राख में कुछ आग शायद रह गई हो
वो सुलगती जा रही फिर याद आए वो ज़माने
अब भी वो मिस्ल-ए-सबा है फूल खिलते जा रहे हैं
खिल पड़े गुलशन वही फिर याद आए वो ज़माने
अब भी जिस्म-ओ-जाँ में मेरे वो ख़ुमारी आश्ना की
जाम हो 'अर्जुन' वही फिर याद आए वो ज़माने
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