हाँ वही सब कुछ पुराना चल रहा था
बैठे थे सुनना सुनाना चल रहा था
चल रही थी अपनी बज़्म-ए-शायरी भी
साथ में सिगरट जलाना चल रहा था
गर मैं साकी बहका हूँ, नाराज़ क्यों है
अपना तो पीना पिलाना चल रहा था
यार इतने तो दिवाने हम नहीं थे
जो हमारा दिल दुखाना चल रहा था
दर्द लेकर बैठे थे महफ़िल में हम सब
और ग़म का कारख़ाना चल रहा था
कुछ नहीं बदला था दुनिया में कभी बस
आदमी का आना जाना चल रहा था
कर रहा था मैं घड़ी तरतीब में तब
वक़्त का भी अपना गाना चल रहा था
जाम उसके तर्ज़ पर ही था बनाया
देखो फिर भी उसका ना ना चल रहा था
कोई मेरी आँख की पुतली से पूछे
ख़्वाब में कैसा ज़माना चल रहा था
लौट आए सब उसे बस देख कर के
आग पर जो इक दिवाना चल रहा था
लोग पानी जब बहाने में लगे थे
मेरा साहिल को मिलाना चल रहा था
मैं था तुम थे वक़्त रातें चाँदनी थी
इश्क़ भी कितना सुहाना चल रहा था
गुम थे अपने दर्दो-ग़म में इसलिए सब
क्योंकि सय्यद का फ़साना चल रहा था
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