कल जहाँ मुझसे मिली थीं बेख़बर यादें तेरी
ले चली हैं आज फिर मुझको उधर यादें तेरी
साथ तेरे ख़त, तेरी तहरीर और तस्वीर के
मैंने रख्खी हैं सजा कर ताक़ पर यादें तेरी
बिन बताए ही चली जाती हैं मुझको और फिर
बिन बताए आ गई घर लौट कर यादें तेरी
साथ लेकर अपने मुझको रात,दिन,शाम ओ सहर
ढूँढती रहती हैं तुझको दर-ब-दर यादें तेरी
चाह कर भी दूर ख़ुद से कर नहीं सकता इन्हें
बन गई हैं हमनशीं लख़्त-ए-जिगर यादें तेरी
दूर हूँ तुझसे मगर मैं बेख़बर बिलकुल नहीं
मुझको रखती हैं हमेशा बा'ख़बर यादें तेरी
बाद तेरे ज़िन्दगी आती है “जस्सर” यूँ नज़र
शहर इक तन्हाइयों का उस में घर यादें तेरी |
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