ताज़ा हैं ज़ख़्म आज भी पिछली बहार के - Karan Bedi

ताज़ा हैं ज़ख़्म आज भी पिछली बहार के
सब याद हैं करम मुझे उस ग़म गुसार के

वो दूसरों से करता रहा वादे प्यार के
परखच्चे उड़ गए मेरे ही एतिबार के

कब आएगी ये मौत मुझे कब मिलेगा चैन
दिन ख़त्म होंगे कब मेरे ये इंतिज़ार के

रुकता नहीं कोई भी मुसाफ़िर हैं सब यहाँ
हर कोई छोड़ जाता है कुछ दिन गुज़ार के

मैं भूल बैठा था मेरी औक़ात इश्क़ में
तूने सही किया मुझे दिल से उतार के

पत्थर सड़क किनारे पड़ा रहता सारी उम्र
लगते नहीं हथौड़े अगर शिल्पकार के

- Karan Bedi
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