हलाहल से मिलाना चाहता हूॅं
तुम्हें दर्पण दिखाना चाहता हूॅं
धुआँ भर जाएगा कमरे में मेरे
मैं अपना दिल जलाना चाहता हूॅं
मुझे फ़ुर्सत नहीं ख़ुद के लिए क्यों
मैं ऐसा क्या कमाना चाहता हूॅं
तभी तो देखना पड़ता है सूरज
नम आँखों को सुखाना चाहता हूॅं
तुम्हें मुझ सा ही करवाना है महसूस
मैं तुमको याद आना चाहता हूॅं
As you were reading Shayari by Bhuwan Singh
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