Vibhat Kumar
August 9, 2022
अगर आपको पता चलता है कि आप कभी शाइर नहीं हो सकते तो क्यों मानव जाति का वक्त बर्बाद कर रहे हैं, हराम की ज़िन्दगी की तलब़ क्यों है आपको। जाइए कुछ और रोज़गार देखिए।
Vibhat Kumar
February 18, 2023
Onomatopoeia या paleontology को पढ़ते वक्त क्या आप भी शब्द को तोड़कर पढ़ने की कोशिश करते हैं ताकि फिर बाद में अंदाज़ा लगा सकें कि पढ़ना कैसे है? उर्दू-हिन्दी में भी लफ़्ज़ को अगर सही तरीके से तोड़कर न पढ़ा जाए तो मतलब अलग अलग निकल सकते हैं।
Krishnakant Kabk
October 18, 2023
अभी तक के सभी Blog में आपने बहुत सी बातें सीखी है या यूँ कह लीजिए कि आपने बहुत सारे फल उगा लिए हैं, उन सब बातों को एक गिलास में मिलाकर अब मैं आपको शायरी नाम का शरबत बनाने की तरकीब बताऊंगा।
Krishnakant Kabk
August 9, 2022
ख़याल वो कच्ची मिट्टी है जिसे बहर नाम के ढाँचे में ढालकर शे'र नाम की ईंटें बनाई जाती है और इन्हीं ईंटों से ग़ज़ल जैसे ख़ूबसूरत आशियानें बनते हैं। इसी के साथ हम ग़ज़ल में मिलने वाली छूट यानी सहूलियत की भी बात करेंगे।
Haider Khan
August 9, 2022
अलिफ़ वस्ल एक ऐसी स्तिथि है जिस में जब भी कोई शब्द व्यंजन पे ख़त्म होता है यानी जिस पर कोई मात्रा नहीं हो और उसके बाद के शब्द का पहला अक्षर कोई स्वर हो तो उच्चारण अनुसार पहले शब्द के आख़री व्यंजन और दूसरे शब्द के पहले स्वर का मिलाप हो जाता है।
Haider Khan
January 6, 2023
वैसे तो यह सत्रहवीं शताब्दी से चली आ रही है लेकिन इसका सब से ज़्यादा इस्तेमाल अठारवीं शताब्दी में उर्दू के उस्ताद शाइर मीर ने किया है, उन्होंने इस बहर में सैकड़ों ग़ज़लें कहीं हैं इसलिए हम इसे बहर-ए-मीर के नाम से भी जानते हैं।
Krishnakant Kabk
August 9, 2022
एक छोटी सी ग़लती जब ग़ज़ल को ख़ारिज करवाती है तो शायर को बड़ी ठेस पहुँचती है और पहुँचे भी क्यों नहीं? आख़िर मेहनत और दिल से कही बात का ख़ारिज हो जाना मामूली नहीं है। इस हादसे से बचने के लिए कुछ कोशिशें की जा सकती हैं जिनमें से रदीफ़ और क़ाफ़िया का दोष निवारण करना सबसे पहला है।
Atul Singh
August 9, 2022
नज़्म जैसी कोई दूसरी विधा भी नहीं हैं, इसका अंदाज़ा आप इस बात से लगा सकते हैं कि बड़े बड़े शाइर जो रंज, जंग, रक़ीब, माशूक आदि पर ग़ज़लें लिख कर तंज़ कसते हैं, वो भी तरन्नुम में नज़्म गाने को मज़बूर हो जाते हैं। यही है नज़्म की ख़ूबसूरती।
Kaif Uddin Khan
February 3, 2023
आज हम इस blog में उर्दू भाषा में इस्तेमाल होने वाले नियम “इज़ाफ़त” के बारे में बात करेंगे। एक अच्छी और मुकम्मल ग़ज़ल कहने के लिए इज़ाफ़त को समझना उतना ही ज़रूरी है जितना कि बहर को समझना। लेकिन उससे पहले सतही तौर पर ये समझ लेते हैं कि इज़ाफ़त क्या होती है।
Kaif Uddin Khan
February 16, 2023
'वाव-ए-अत्फ़' (यानी 'और या ए लगाकर' दो शब्दों को कैसे जोड़ा जाता है) क्या होता है, 'वाव-ए-अत्फ़' के नियम क्या हैं, ये कहाँ पर लगाना चाहिए, कैसे इसे लगाकर आप अपनी शायरी में और भी ज़्यादा बेहतरी ला सकते हैं, सारी बातों के जवाब इस ब्लॉग में बड़े ही आसान लफ़्ज़ों में समझाए गए हैं
Kaif Uddin Khan
December 21, 2023
"बात ये है कि आदमी शाइर या तो होता है या नहीं होता" ये शेर इस बात को तो पुख़्ता करता है कि शायर बनना कोई ऐसा काम नहीं है जो किताबी ज्ञान से पढ़ कर किया जाए। मगर शायरी के लिए ये ज़रूरी है कि शायर अरूज़ के नियमों का ध्यान रखते हुए, अपने ख़्यालों पर भी काम करे। कई सुख़नशनास लोग जब अपनी पहली ग़ज़ल लिखते हैं तो