इन्हीं ख़्वाबों पे ख़ुश होना इन्हीं ख़्वाबों से डर जाना
तमाशा बन गया इनके लिए अपना तो मर जाना
सिखाया था तुम्हीं ने आरज़ू को दर-ब-दर फिरना
तुम्हीं ने ज़िंदगी को इस क़दर क्यूँ मुख़्तसर जाना
कई दिन से हमें ये काम भी रास आ गया या रब
सवेरे को सिमटना रात को फिर से बिखर जाना
अभी तक है ख़यालों में वही तस्वीर ग़म उसका
बहुत मासूम पलकों पर समंदर का ठहर जाना
भरे बैठे थे फिर भी हम न रोए ख़ुद-फ़रेबी पर
तिरी मंज़िल को हमने अजनबी की रहगुज़र जाना
बड़ी ही क़ीमती शय थी नज़र अपनी ज़माने में
इसी को जाम-ए-जम समझे इसी को मोतबर जाना
जो हम देखें तिरी जानिब तो तेरा रुख़ बदल जाए
इसी गर्दिश को हमने गर्दिश-ए-शाम-ओ-सहर जाना
'सबा' की रहगुज़र पर इक सहर ख़ुशबू चली ऐसे
मुसाफ़त कम रही लेकिन बहुत लम्बा सफ़र जाना
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