हर ज़ख़्म-ए-दिल से अंजुमन-आराई माँग लो
फिर शहर-ए-पुर-हुजूम से तन्हाई माँग लो
मौसम का ज़ुल्म सहते हैं किस ख़ामुशी के साथ
तुम पत्थरों से तर्ज़-ए-शकेबाई माँग लो
हुस्न-ए-तअल्लुक़ात की जो यादगार थे
माज़ी से ऐसे लम्हों की रा'नाई माँग लो
माँगो समुंदरों से न साहिल की भीक तुम
हाँ फ़िक्र-ओ-फ़न के वास्ते गहराई माँग लो
समझो उन्हें जो देते हैं ये मशवरा तुम्हें
नर्गिस से हाथ जोड़ के बीनाई माँग लो
वो सो के ज्यूँ ही उट्ठें पहुँच जाओ उन के पास
और उन से इंक़लाब की अंगड़ाई माँग लो
'नजमी' सुना है तुम पे भी मौसम है मेहरबाँ
बाद-ए-सुमूम से कभी पुर्वाई माँग लो
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