समय ने मुझे आज़माया बहुत है
सितम ज़िंदगी ने भी ढाया बहुत है
मुझे फिर भी इस से नहीं है गिला कुछ
मगर मानता हूँ सताया बहुत है
कभी गर मिलूँगा मैं उस से कहूँगा
तिरी याद ने जाँ रुलाया बहुत है
न कहना किसी से कभी बात ये तुम
मिरे साथ तुम ने निभाया बहुत है
कभी जिस की ख़ातिर भुलाई थी दुनिया
वही शख़्स मुझ से पराया बहुत है
मैं कहता नहीं हूँ मगर है यही सच
कि तुम ने मिरा दिल दुखाया बहुत है
मुझे बेवफ़ा से नहीं है गिला कुछ
मगर बेवफ़ा ने सताया बहुत है
सभी इस हक़ीक़त से वाकिफ़ यहाँ हैं
कि माँ बाप का सर पे साया बहुत है
अमीरों ने 'सागर' ग़रीबों की ख़ातिर
किया कुछ नहीं पर जताया बहुत है
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