हर एक शख़्स मुहब्बत में ढल रहा है आज
मिरा ही दिल है जो बेबाक चल रहा है आज
किसी किसी को ख़बर है मैं कैसा इंसाँ हूँ
जो बे-ख़बर था वो अब हाथ मल रहा है आज
न कोई रिश्ता न है कोई आश्ना उससे
ज़माना जानता है फिर भी जल रहा है आज
जो देखते हो ये मौसम सुहाना और हसीं
ये सिर्फ़ हँसने से उसके बदल रहा है आज
डरा डरा सा कभी रहता था जो शख़्स यहाँ
किसी के प्यार के आँचल में पल रहा है आज
दुआ कु़बूल भी की जा रही है मेरी अब
सो धीरे धीरे वो दिल से निकल रहा है आज
नसीब ने मिरे करवट कुछ इस तरह बदली
कि एक पल का सुकूँ तक फिसल रहा है आज
ये कश्मकश ही न होती जो मौत आ जाती
वो शख़्स झूठ पे झूठ अब उगल रहा है आज
उसे बस एक दफ़ा देखना था देख लिया
तुम अब न पूछो कि कितना सफल रहा है आज
ये सरकशी है या आवारगी है मेरी 'अनुज'
मिरा ही जिस्म मुझे ही निगल रहा है आज
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