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चाहे जाने की भी ख़ुशी नहीं है  - Nadir Ariz

चाहे जाने की भी ख़ुशी नहीं है
उसको ख़्वाहिश विसाल की नहीं है

इसलिए खेल से निकल गया हूँ
ये मिरी जीत की घड़ी नहीं है

हिज्र की रात कट नहीं रही दोस्त
और ये रात आख़िरी नहीं है

तुम तो हर शख़्स से ये कहते हो
आप से जान क़ीमती नहीं है

इससे ऊँचे पहाड़ सर किये हैं
जीत मेरे लिए नई नहीं है

वो बताता रहा गढ़े का मुझे
मैंने उस शख़्स की सुनी नहीं है

- Nadir Ariz

Raat Shayari

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