समझौतों पर समझौते हैं फिर भी जीना पड़ता है
ख़्वाहिश मार के चलते जाना चलते रहना पड़ता है
इज़्ज़त रास नहीं आती है जिनको दुनियादारी में
ऐसे ऐसे लोगों को भी आप बुलाना पड़ता है
कुछ ऐसे किरदार हैं जिनको मालूमात नहीं अपनी
जीवन के हर मोड़ पे इनको सब समझाना पड़ता है
मजबूरन कुछ लोग यहाँ पर उम्र बिताए जाते हैं
अपने झुकते काँधों पर ये बोझ उठाना पड़ता है
नींद नहीं आती है लेकिन फिर भी कल की ख़ातिर तो
अपने आप को अपने अंदर आप सुलाना पड़ता है
दुनियादारी की रस्मों को ढोने की मजबूरी में
कैसे पत्थर दिल लोगों का साथ निभाना पड़ता है
कैसे भी इक रात रुके तो घर भी रौशन हो जाए
ऐसे में फिर जुगनू को भी चाँद बुलाना पड़ता है
इश्क़ में समझो अपनी गर्दन उसके हाथ में है तो फिर
कैसे भी कुछ भी कर लो हर नाज़ उठाना पड़ता है
सारे राज़ छुपाकर रखिए अपनी ही परछाईं से
राज़ खुले तो मिट्टी को भी ताज बताना पड़ता है
अपनी जान का दुश्मन लेकिन एक ही छत के नीचे हो
जान गँवाकर भी उसको हर हाल बचाना पड़ता है
इश्क़ इबादत में ज़ाहिर है एक यही मजबूरी है
जान के दुश्मन को भी अपनी जान बताना पड़ता है
जिनकी बातें और इरादे राह में रोड़े अटकाएँ
ऐसे लोगों से फिर अपना ध्यान हटाना पड़ता है
इश्क़ में भागो घर से चाहे लेकिन इतना ध्यान रहे
प्यार जताना हाथ बँटाना साथ निभाना पड़ता है
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