मिरे साथ वो जो घड़ी - भर रहा था
सुना है किसी का सितमगर रहा था।
उसी की ख़बर छप रही थी नगर में
सनम है कभी जो सुखनवर रहा था।
लरज़ते हुए हाथ थमते नहीं थें
वो बूढ़ा सिने में धुआँ भर रहा था।
मैं वो दास्ताँ भूल पाता नही हूँ
मैं चौखट पे था और वो अंदर रहा था।
पिघल जा रहे थें सभी ख़्वाब मेरे
रफ़ीकों सुनो वो कलंदर रहा था।
मैं उसके जमाने का शायर नही हूँ
कुचल के क़दर जो मुक़र्रर रहा था।
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