दिल-ए-दीवाना अर्ज़-ए-हाल पर माइल तो क्या होगा
मगर वो पूछ बैठे ख़ुद ही हाल-ए-दिल तो क्या होगा
हमारा क्या हमें तो डूबना है डूब जाएँगे
मगर तूफ़ान जा पहुँचा लब-ए-साहिल तो क्या होगा
शराब-ए-नाब ही से होश उड़ जाते हैं इंसाँ के
तिरा कैफ़-ए-नज़र भी हो गया शामिल तो क्या होगा
ख़िरद की रहबरी ने तो हमें ये दिन दिखाए हैं
जुनूँ हो जाएगा जब रहबर-ए-मंज़िल तो क्या होगा
कोई पूछे तो साहिल पर भरोसा करने वालों से
अगर तूफ़ाँ की ज़द में आ गया साहिल तो क्या होगा
ख़ुद उस की ज़िंदगी अब उस से बरहम होती जाती है
उन्हें होगा भी पास-ए-ख़ातिर-ए-'क़ाबिल' तो क्या होगा
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