सच तो ये है, कि किसी से भी सिफ़ारिश नहीं की
अपनी परवाज़ पे हम ने कभी बंदिश नहीं की
उसकी नज़रों में बराबर हैं सभी यकसाँ हैं
रब ने मुनकिर पे कभी संग की बारिश नहीं की
मेरी मिट्टी को उठा कर ये मेरा कूज़ा-गर
शक्ल देने लगा पर चाक ने गर्दिश नहीं की
एक ही शहर में हम दोनों का है घर फिर भी
हमने इक दूसरे से मिलने की ख़्वाहिश नहीं की
इतने खुद्दार थे हम अपने ही मालिक के हुजूर
हाथ फैलाए मगर होंटों ने जुम्बिश नहीं की
काग़ज़ी रोटियों से भूख मिटा ली हमने
अपनी ग़ुरबत की कहीं पर भी नुमाइश नहीं की
हसरत-ए-दीद का सरमाया बहुत है हम को
वक़्त ने तुझ से मिलाने की जो कोशिश नहीं की
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