किराये का लगाया मज़हबी बाज़ार हमने भी
खड़ी कर ली दिलों के दरमियाँ दीवार हमने भी
लगा यूँ जब शराफ़त से गुज़ारा हो नहीं सकता
उठा लीं हाथ में बन्दूक और तलवार हमने भी
न कोई सिलसिला निकला हजारों ख़त लिखे लेकिन
अभी अफ़सोस होता है लिखा बेकार हमने भी
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