आजकल मैं इक कहानी लिख रहा हूँ
उसमें बस दुनिया सयानी लिख रहा हूँ
है जिन्हें याँ देखकर गिरगिट भी हैरान
उनको भी मैं ख़ानदानी लिख रहा हूँ
जाने क्या-क्या लिख रहे हैं लोग लेकिन
मैं तो पानी को ही पानी लिख रहा हूँ
जान लेने पर तुले हैं लोग सबकी
जान कैसे है बचानी लिख रहा हूँ
हैं बुझाने में लगे सब जन दिए को
कैसे बाती है बढ़ानी लिख रहा हूँ
सब लगाने के तरीक़े हैं सिखाते
आग कैसे है बुझानी लिख रहा हूँ
और क्या ही लिखना है कोई बताए
साँस को माँ का म'आनी लिख रहा हूँ
कनखियों से झाँकने की बात और है
बज़्म में नज़रें चुरानी लिख रहा हूँ
हाथों से तो सब पिलाते हैं मगर मैं
मद्य आँखों से पिलानी लिख रहा हूँ
लोग पल पल लिख रहे हैं मौत और मैं
हर समय बस ज़िंदगानी लिख रहा हूँ
सब गिराने में लगे दस्तार को याँ
कैसे इज़्ज़त है कमानी लिख रहा हूँ
लिखने के क़ाबिल हैं तालीमात सारी
कुछ नई और कुछ पुरानी लिख रहा हूँ
Read Full