न लुत्फ़-ए-दीद अब कोई तेरी तस्वीर-ओ-सूरत में
हुआ मैं बेअसर कुछ इस तरह तेरी नदामत में
ये याद-ए-रफ्तगां रंज-ओ-अलम और ये मलाल-ए-ग़म
हमारे साथ ही ये दफ़्न होगें अब तो तुर्बत में
सियह-बख़्ती ये काली रात और ये टूटती साँसें
कहीं मैं मर न जाऊँ ख़ौफ़ से इस तुंद वहशत में
ये तेरी गुल फ़िशानी क़ब्र पे और शोर ये तेरा
मुझे आराम से सोने नहीं देते हैं ख़ल्वत में
जिगर के ज़ख्म को हमने कहा है ज़ख़्म शेरों में
न किस्सागोई की हमने ग़मे दिल की वज़ाहत में
मैं हूँ सावन का अंधा सब्ज़ दिखता है मुझे हर सू
मुझे तुम माफ़ कर देना जो कर दूं भूल ग़फ़लत में
ये दिल शफ़्फ़ाफ़ था कितना फ़क़त मैं ही था जब मुझमे
मेरी हस्ती कहीं फिर खो गयी मेरी कसाफ़त में
उसे देखो उसे परखो अभी भी "हैफ़" है वो ही
जिसे तुम छोड़ आये थे कभी मरने की हालत में
Read Full