" शहर"

  - Shubham Maurya

" शहर"

मैं बैठा था गांव के बाहर उस रास्ते पर
जो शहर को जाता है
हर एक शख़्स मुस्कुराता हुआ
बेताब नज़रों से शहर को जाता है
चेहरे पर शिकन, झुके हुए कंधे और
दिल में टीस लिए वापस आता है
मैं न समझता था शहर में इतना ज़हर क्यों है
यह हमारी ख़ुशियाँ, हमारे आँखों की चमक
जलाकर पेट भरता है, धुआँ बनाता है

  - Shubham Maurya

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