तुम्हें मिलना अगर जो हो तो सबके बाद आना
मगर तुम क़ब्र पर सुन लो दिल-ए-नाशाद आना
मिलाना है किसी को तो मुझे भी वक़्त दो तुम
अभी तन्हा रहूंँगा मैं सो कुछ दिन बाद आना
गया था क़ैद होकर के उसी की जाल में मैं
उसे अब खल रहा होगा मेरा आज़ाद आना
पिता का नाम माँ की डाँट को पाया नहीं जिसने
भरी दुनिया में कहते हैं इसे बर्बाद आना
सभी रस्मन ज़माना छोड़ के जाने लगे हैं
अभी लाज़िम है कुछ दिन तक किसी की याद आना
बताओ 'भारती' के ग़म भला क्या आजकल हैं
उसे ग़म है किसी रस्ते में बन ईयाद आना
As you were reading Shayari by Shubhangi Bharti
our suggestion based on Shubhangi Bharti
As you were reading undefined Shayari