ना-ख़ुदा रास ही आया न किनारे मुझ को
कौन इस पार से उस पार उतारे मुझ को
आज के बाद दुआ कोई नहीं माँगूँगा
आज के बाद नहीं भाएँगे तारे मुझ को
उस ने आवाज़ अगर दी भी तो क्या हासिल है
चाहता हूँ कि कोई अब न पुकारे मुझ को
वो जो जिन पे था भरोसा कि सहारा देंगे
आख़िरश छोड़ गए मेरे सहारे मुझ को
फिर समझ आएगा अच्छा हूँ बुरा हूँ पहले
अपनी आँखों में कोई शख़्स उतारे मुझ को
और मुश्किल को बढ़ा देता मैं अक्सर उस की
दूर जाने के वो करता था इशारे मुझ को
मैं यहाँ हो के कहीं और ही होता हूँ मगर
लोग दीवाना कहा करते हैं सारे मुझ को
वक़्त पड़ने पे दिल-ओ-जान लुटा देंगे हम
याद आते हैं बहुत वादे तुम्हारे मुझ को
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