कभी तो चाहिए इस जिस्म-ए-ज़िंदाँ से रिहाई भी

  - Purushottam Tripathi

कभी तो चाहिए इस जिस्म-ए-ज़िंदाँ से रिहाई भी
कभी तो चाहिए अपनों से दिल को आशनाई भी

मेरी मंज़िल तेरी ज़ुल्फ़ों के पेच-ओ-ख़म से आगे है
मेरे ज़िम्मे है घर वालों की रोटी भी दवाई भी

  - Purushottam Tripathi

More by Purushottam Tripathi

As you were reading Shayari by Purushottam Tripathi

Similar Writers

our suggestion based on Purushottam Tripathi

Similar Moods

As you were reading undefined Shayari