ख़ंजर-ए-शब जो उतर जाएँगे आँखों में मिरी
मंज़र-ए-रफ़्ता ठहर जाएँगे आँखों में मिरी
ज़ुल्म सहने के लिए रखता हूँ पत्थर का जिगर
अश्क-ए-ग़म यूँही न भर जाएँगे आँखों में मिरी
होगा बाज़ू से नुमायाँ मिरी जुरअत का कमाल
हादसे जब भी ठहर जाएँगे आँखों में मिरी
जब भी आएगा मुझे अहद-ए-गुज़िश्ता का ख़याल
कितने तूफ़ाँ से बिफर जाएँगे आँखों में मिरी
किस तरह ख़ुद में उतारेंगे सहर का नश्शा
ज़ख़्म-ए-शब नींदें जो धर जाएँगे आँखों में मिरी
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