कई बार एक बात बार बार भी बोलूँ , - Vibhat kumar

कई बार एक बात बार बार भी बोलूँ ,
तो सुन लेना कि कहना तो ऐसा ही कुछ था,
पर ज़ेहन कुछ गढ़ता नगीने सुनहरे,
उससे पहले ही तुमसे
बात करने की ज़रूरत ने शब्दों के बाज़ार में सबके आगे
हमारी ज़बान खींच ली!
जैसे सरस्वती को ख़बर हो गई,
कि विभात फिर से अपनी जाने जहाँ को,
तुझ हमनवा को,
अपनी मल्लिका को,
कुछ कहने चला है, दिल पर पूरा ज़ोर देकर,
और वो, आकर मेरी ज़बान पर बैठकर मुझसे बोलीं,
"नहीं नहीं! यहाँ तो न दूंगी तूझे शब्दों का जादू,
न करूँगी फराहम एहसासों की खुशबू,
सारे ज्ञान को ढक लूंगी, जा!
अब बोल के दिखा... बोल पाएगा कुछ?"
और मेरे मुंह से जानाँ! यू नो ना आई लव यू ही निकला!
हमेशा की मानिंद!
कोई बात नहीं जो तुम्हें इससे अबके कुछ फी़ल न हुआ,
और तुम ने जवाब में कुछ न कहा,
क्लिशे ही है ये! पर इस क्लिशे की कहानी सुना दी है तुमको,
और रिवाज़ के मुताबिक सौरी कहा है!
तुम्हारा विभात

- Vibhat kumar
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