उस लड़की के माथे पे
थे कुछ दाग़ बचपन के,
उसे मालूम था के नहीं
मालूम नहीं मुझको,
पर वो दाग़ मुझको आए दिन हैरान करते थे,
गालों के आसपास तो बचपन का मौसम था,
और गालों से नीचे हवस जान देती थी,
सो मुझको याद नहीं कि तब
नीचे कौन सा मौसम गुज़रता था,
पर लड़की के माथे पर जो दाग़ थे ,
उसे बहुत आम लगते थे,
प' मुझको मालूम है इतना
कि वो ही दाग़ थे जो थे,
मानो सभी बुरी याद की कीलें
ठोकी गई हो माथे पर,
मैं उसे समझा नहीं पाया,
के इनको सम्भाल कर रखना!
भले मुझको इन निशानों को छूने की
अब इजाज़त नहीं,
मगर जिनको भी इजाज़त दो,
उसे मालूम हो जाए,
के तेरा माथा ईसा के लिए,
क्राॅस बनता था,
के तेरे माथे को चूमने वाला आदमी
ईश्वर को पूजेगा !
कि तेरे दाग़ में ही हैरत सांस लेती है,
कि तेरे जिस्म में कुछ और है ही नहीं छूने को,
जिसपर गौर करते हम,
मगर वो दाग़ बचपन के,
मेरी जाँ! वही दाग़ बचपन के,
तुमको सुन्दर बनाते थे!!!
औरों से बेहतर बनाते थे!!!
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