"दिल से गुफ़्तगू"
तेरी इबादतों में आजकल नज़र आते हैं,
कुछ फ़ासले तो हैं पर थोड़ा क़रीब आते हैं,
ये इंसान तेरे हर एक दुःख को साथ सहता हैं,
आज यह दिल कुछ कहता है
तेरी बातों में ही हम खोए रहते हैं,
शहर आपका है और हम आबाद होते हैं
शाम को यह आफ़ताब तेरे चाँद के नूर के सामने रोज़ झुकता हैं,
आज यह दिल कुछ कहता है
हमारी मोहब्बत है जो तू बे-फज़ूल बेवजह नाचती रहती है,
तेरे मिलने से हमारी भी साँसें लड़-खड़ा जाती हैं,
दूर से देख कर ही तुझपे यह दिल रोज़ मरता है,
आज यह दिल कुछ कहता है
अभी इस वक्त की खामोशी को ज़रा रमज़ान समझ लो,
फिर बाद में थोड़ा प्यार से ईद मनाएँगे
वैसे आज कल तुझसे बेइंतेहां मोहब्बत करने में अच्छा लगता है,
आज यह दिल कुछ कहता है
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