बाप की डाँट भूल जाता हूँ
कहते जब आ गले लगाता हूँ
कोई दस्तक भले न दे लेकिन
दीप मैं रोज़ इक जलाता हूँ
खोजती है नज़र किसे तेरी
जब भी आवाज़ मैं लगाता हूँ
चाँद है आसमान में तो क्या
मैं सितारा हूँ टिमटिमाता हूँ
इक मुलाकात याद करके मैं
इक ग़ज़ल रोज़ गुनगुनाता हूँ
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