इश्क़ न करना यार मलालत होती है
रुस्वाई और महज़ जलालत होती है
कुछ दिन तो वो साथ रहेगा हर लम्हा
उसके बाद तो फ़ुर्क़त फ़ुर्क़त होती है
हिज्र-ए-जानाँ में तुम ऐसे तड़पोगे
बिन पानी मछली सी हालत होती है
चंद घड़ी में ऐसे वो बदले है रंग
गिरगिट को भी उस पे हैरत होती है
तुम को लेकर लाखों ख़्वाब सजाए थे
अपने उस ख़्वाबों पे नदामत होती है
लोहा जैसे खा जाता इंसानों को
जंग के जैसी ही ये मोहब्बत होती है
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