ये तेरे ख़्वाब से जुड़ी हुई है
नींद जो आँख में भरी हुई है
मेरे तो सारे ज़ख़्म ताज़ा हैं
आपकी चोट ही सड़ी हुई है
ऐसा क्या काम है तुझे ऐ दोस्त
जाने की जल्दी क्यों लगी हुई है
आज भी इंतिज़ार में तेरे
इक घड़ी मेज़ पर पड़ी हुई है
चंद नोटों के नीचे बटवे में
उसकी तस्वीर भी रखी हुई है
दिल को पत्थर बना के रक्खा है
ज़िंदगी ठाठ पे अड़ी हुई है
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