Afzal Minhas

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Afzal Minhas shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Afzal Minhas's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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  • Ghazal
काँच की ज़ंजीर टूटी तो सदा भी आएगी
और भरे बाज़ार में तुझ को हया भी आएगी

इत्र में कपड़े बसा कर मुतमइन है किस लिए
बा-वफ़ा हू जा कि यूँ बू-ए-वफ़ा भी आएगी

देख ले साहिल से जी भर के मचलती लहर को
इस तरफ़ कुछ देर में मौज-ए-फ़ना भी आएगी

दूधिया नाज़ुक गले में बाँध ले ता'वीज़ को
आज सुनता हूँ कि बस्ती में बला भी आएगी

रात के पिछले पहर दस्तक का रख लेना ख़याल
पत्ते खड़केंगे ज़रा आवाज़-ए-पा भी आएगी

उजली उजली ख़्वाहिशों पर नींद की चादर न डाल
याद के रौज़न से कुछ ताज़ा हवा भी आएगी

जा चुके सारे बगूले फ़िक्र की क्या बात है
खेत को सैराब करने अब घटा भी आएगी

दौर के लोगों को नज़रों में बसा कर देख ले
क़ुर्ब मिल जाएगा आँखों में जिला भी आएगी

शहर-ए-ना-पुरसाँ के मंज़र नक़्श कर ले ज़ेहन में
आँख रस्ते में कोई मंज़र गिरा भी आएगी

दिल की मस्जिद में कभी पढ़ ले तहज्जुद की नमाज़
फिर सहर के वक़्त होंटों पर दुआ भी आएगी

ज़िंदगी का ये मरज़ 'अफ़ज़ल' चला ही जाएगा
तेरे हाथों में कभी ख़ाक-ए-शिफ़ा भी आएगी
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Afzal Minhas
गुम-सुम हवा के पेड़ से लिपटा हुआ हूँ में
कत्बे पे अपने हाथ से लिक्खा हुआ हूँ मैं

आँखों में वसवसों की नई नींद बस गई
सो जाऊँ एक उम्र से जागा हुआ हूँ मैं

यारब रगों में ख़ून की हिद्दत नहीं रही
या कर्ब की सलीब पे लटका हुआ हूँ मैं

अपनी बुलंदियों से गिरूँ भी तो किस तरह
फैली हुई फ़ज़ाओं में बिखरा हुआ हूँ मैं

पत्ते गिरे तो और भी आसेब बन गए
वो शोर है कि ख़ुद से भी सहमा हुआ हूँ मैं

शाख़ों से टूटने की सदा दूर तक गई
महसूस हो रहा है कि टूटा हुआ हूँ मैं

वो आग है कि सारी जड़ें जल के रह गईं
वो ज़हर है कि फूल से काँटा हुआ हूँ मैं

कटते हुए तने का भी नोचा गया लिबास
गिर कर ज़मीं पे और भी रुस्वा हुआ हूँ मैं

'अफ़ज़ल' मैं सोचता हूँ ये क्या हो गया मुझे
मिट्टी मिली तो और भी चटख़ा हुआ हूँ मैं
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Afzal Minhas
मिटते हुए नुक़ूश-ए-वफ़ा को उभारिए
चेहरों पे जो सजा है मुलम्मा' उतारिए

मिलना अगर नहीं है तो ज़ख़्मों से फ़ाएदा
छुप कर मुझे ख़याल के पत्थर न मारिए

कोई तो सरज़निश के लिए आए इस तरफ़
बैठे हुए हैं दिल के मकाँ में जुवारिए

हाथों पे नाचती है अभी मौत की लकीर
जैसे भी हो ये ज़ीस्त की बाज़ी न हारिए

शिकवा न कीजिए अभी अपने नसीब का
साँसों की तेज़ आँच पे हर शब गुज़ारिए

मिस्मार हो गई हैं फ़लक-बोस चाहतें
शहर-ए-जफ़ा से अब न मुझे यूँ पुकारिए

फूलों से ताज़गी की हरारत को छीन कर
मौसम के ज़हर के लिए गुलशन सँवारिए

रुस्वाइयों का होगा न अब सामना कभी
जल्दी से आरज़ू को लहद में उतारिए

'अफ़ज़ल' ये तीरगी के मुसाफ़िर कहाँ चले
जी चाहता है इन पे कई चाँद मारिए
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गिर पड़ा तू आख़िरी ज़ीने को छू कर किस लिए
आ गया फिर आसमानों से ज़मीं पर किस लिए

आईना-ख़ानों में छुप कर रहने वाले और हैं
तुम ने हाथों में उठा रक्खे हैं पत्थर किस लिए

मैं ने अपनी हर मसर्रत दूसरों को बख़्श दी
फिर ये हंगामा बपा है घर से बाहर किस लिए

अक्स पड़ते ही मुसव्विर का क़लम थर्रा गया
नक़्श इक आब-ए-रवाँ पर है उजागर किस लिए

एक ही फ़नकार के शहकार हैं दुनिया के लोग
कोई बरतर किस लिए है कोई कम-तर किस लिए

ख़ुशबुओं को मौसमों का ज़हर पीना है अभी
अपनी साँसें कर रहे हो यूँ मोअत्तर किस लिए

इतनी अहमियत के क़ाबिल तो न था मिट्टी का घर
एक नुक़्ते में सिमट आया समुंदर किस लिए

पूछता हूँ सब से अफ़ज़ल कोई बतलाता नहीं
बेबसी की मौत मरते हैं सुख़न-वर किस लिए
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Afzal Minhas
उस पेड़ को छुआ तो समर-दार हो गया
फिर जाने क्या हुआ वो शरर-बार हो गया

मौसम की भूल थी कि मिरी दस्तरस की बात
पत्थर से एक फूल नुमूदार हो गया

बिखरे हुए हैं दिल में मिरी ख़्वाहिशों के रंग
अब मैं भी इक सजा हुआ बाज़ार हो गया

इक बार मैं भी ख़्वाब में बैठा था तख़्त पर
आँखें खुलीं तो और भी नादार हो गया

पहले तो सर को फोड़ लिया उस को देख कर
फिर मैं भी एक रौज़न-ए-दीवार हो गया

वैसे तमाम उम्र मिरी नींद में कटी
घर में नक़ब लगी तो मैं बेदार हो गया

यारो ये ज़िंदगी का मकाँ भी अजीब है
ता'मीर हो गया कभी मिस्मार हो गया

लफ़्ज़ों के फूल आँच सी देने लगे मुझे
बेबाक आज शो'ला-ए-गुफ़्तार हो गया

दुश्मन नज़र पड़ा तो मिटीं रंजिशें तमाम
लड़ने को सारा शहर ही तय्यार हो गया

मुजरिम बरी हुआ तो कई क़त्ल हो गए
बस्ती का इक ग़रीब गिरफ़्तार हो गया

'अफ़ज़ल' कुछ इस तरह की अचानक हवा चली
साँसें बहाल रखना भी दुश्वार हो गया
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Afzal Minhas
सौ हाथ उठे कर्ब की ख़ुश्बू को चुराने
क्या ज़ख़्म लगाए हैं मिरे तन पे हवा ने

रस्ते में कोई पेड़ जो मिल जाए तो बैठूँ
वो बार उठाया है कि दिखने लगे शाने

आँखों में बसी थी तिरे चेहरे की तमाज़त
चलने न दिया राह में ज़ंजीर-ए-सदा ने

चेहरे थे कि मरक़द की तरह नौहा-ब-लब थे
क्या क्या न रुलाया मुझे मानूस फ़ज़ा ने

नग़्मों के तआ'क़ुब में न जाओ कि अभी तक
इंसाँ को मयस्सर ही नहीं होंट हिलाने

क्यूँ इतने परेशान हो उनवाँ की तलब में
किरदार मुकम्मल हो तो बनते हैं फ़साने

आँखों के झरोकों से किसे ढूँड रहे हो
हर नक़्श मिटा डाला है सहरा की हवा ने

दुनिया में यही सोच के ज़िंदा हूँ मैं 'अफ़ज़ल'
एहसास तो बख़्शा है मुझे मेरे ख़ुदा ने
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Afzal Minhas
कर्ब के शहर से निकले तो ये मंज़र देखा
हम को लोगों ने बुलाया हमें छू कर देखा

वो जो बरसात में भीगा तो निगाहें उट्ठीं
यूँ लगा है कोई तुरशा हुआ पत्थर देखा

कोई साया भी न सहमे हुए घर से निकला
हम ने टूटी हुई दहलीज़ को अक्सर देखा

सोच का पेड़ जवाँ हो के बना ऐसा रफ़ीक़
ज़ेहन के क़द ने उसे अपने बराबर देखा

जब भी चाहा है कि मलबूस-ए-वफ़ा को छू लें
मिस्ल-ए-ख़ुशबू कोई उड़ता हुआ पैकर देखा

रक़्स करते हुए लम्हों की ज़बाँ गुंग हुई
अपने सीने में जो उतरा हुआ ख़ंजर देखा

ज़िंदगी इतनी परेशाँ है ये सोचा भी न था
उस के अतराफ़ में शोलों का समुंदर देखा

रात भर ख़ौफ़ से चटख़े थे सहर की ख़ातिर
सुब्ह-दम ख़ुद को बिखरते हुए दर पर देखा

वो जो उड़ती है सदा दस्त-ए-वफ़ा में 'अफ़ज़ल'
उसी मिट्टी में निहाँ दर्द का गौहर देखा
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Afzal Minhas
तड़प रहा था मैं जिस दर्द-ए-ला-दवा के लिए
वो मिल गया है मगर छीन ले ख़ुदा के लिए

मैं बूँद बूँद टपकता हूँ अपने होंटों पर
चला था ले के ये सरमाया कर्बला के लिए

फ़िशार-ए-ग़म ने मुझे चूर चूर कर डाला
किवाड़ खोल दे सारे ज़रा हवा के लिए

कटी हुई है मिरे ताज़ा मौसमों की ज़बाँ
कहाँ से लाऊँगा अल्फ़ाज़ अब दुआ के लिए

मिरी तलब ने मिरे हाथ तोड़ डाले हैं
बहुत कड़ा है ये लम्हा मिरी अना के लिए

कभी दरीचे समुंदर की सम्त खुलते थे
तरस गया हूँ मगर अब खुली फ़ज़ा के लिए

मुझे ख़बर है झुकेगी तिरी नज़र न कभी
बनी है ये तो सिफ़त चश्म-ए-बा-हया के लिए

हर एक चीज़ यहाँ काग़ज़ी लिबास में है
कोई जगह नहीं मिलती गुल-ए-वफ़ा के लिए

ख़याल में कई काँटे उतर गए 'अफ़ज़ल'
सज़ा मिली है ये इक हर्फ़-ए-ना-रसा के लिए
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