Anees Ahmad Anees

Anees Ahmad Anees

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Anees Ahmad Anees shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Anees Ahmad Anees's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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  • Ghazal
जो आईने से तेरी जल्वा-सामानी नहीं जाती
किसी भी देखने वाले की हैरानी नहीं जाती

कभी इक बार हौले से पुकारा था मुझे तुम ने
किसी की मुझ से अब आवाज़ पहचानी नहीं जाती

भरी महफ़िल में मुझ से फेर ली थीं बे-सबब नज़रें
वो दिन और आज तक उन की पशेमानी नहीं जाती

पिसे जाते हैं दिल हर-गाम पे शोर-ए-क़यामत से
ख़िराम-ए-नाज़ तेरी फ़ित्ना-सामानी नहीं जाती

गवारा ही न थी जिन को जुदाई मेरी दम-भर की
उन्हीं से आज मेरी शक्ल पहचानी नहीं जाती

वो मेरे हाथ का शोख़ी से जाना उन के दामन तक
वो उन का नाज़ से कहना कि नादानी नहीं जाती

गरेबाँ अहल-ए-वहशत के सिया करता था होश इक दिन
और अब मुझ से ही मेरी चाक-दामानी नहीं जाती
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Anees Ahmad Anees
नज़र मिलते ही साक़ी से गिरी इक बर्क़ सी दिल पर
वो उट्ठा शोर टूटे जाम कि बन आई महफ़िल पर

उसी अंदाज़ से उस ने लिखी है दास्ताँ दिल पर
गले में प्यार से बाहें हमाइल और छुरी दिल पर

कोई इक हादिसा हो गर करें हम ज़िक्र भी उस का
गुज़रते हैं यहाँ तो हादसे पर हादसे दिल पर

न मंज़िल है न जादा है न कोई राहबर बाक़ी
मिरा ज़ौक़-ए-सफ़र बाक़ी है इक हंगामा-ए-दिल पर

तवाफ़-ए-माह करना और ख़ला में साँस लेना क्या
भरोसा जब नहीं इंसान को इंसान के दिल पर

वही मौजें जो मुझ को खींच कर लाई हैं तूफ़ाँ में
उन्हें मौजों के साथ इक रोज़ में पहुँचूँगा साहिल पर

मसर्रत और राहत से न थीं रानाइयाँ काफ़ी
'अनीस' एहसान ग़म के भी बहुत हैं ना-तवाँ दिल पर
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Anees Ahmad Anees
फ़िराक़-ए-यार में कुछ कहिए समझाया नहीं जाता
दिल-ए-वहशी किसी सूरत से बहलाया नहीं जाता

हमीं ने चुन लिए फूलों के बदले ख़ार दामन में
फ़क़त गुलचीं के सर इल्ज़ाम ठहराया नहीं जाता

सर-ए-बाज़ार रुस्वा हो गए क्या हम न कहते थे
किसी सौदाई के मुँह इस क़दर आया नहीं जाता

गरेबाँ थाम लेंगे ख़ार तो मुश्किल बहुत होगी
गुलाबों की रविश पर इतना इठलाया नहीं जाता

महक जाएगी मेरी ख़ामुशी भी बू-ए-गुल हो कर
निदा-ए-हक़ को क़ैद-ओ-बंद में लाया नहीं जाता

उधर वो अहद-ओ-पैमान-ए-वफ़ा की बात करते हैं
इधर मश्क़-ए-सितम भी तर्क फ़रमाया नहीं जाता

'अनीस' उट्ठो नई फ़िक्रों से राहें ज़ौ-फ़िशाँ कर लो
मआ'ल-ए-लग़्ज़िश-ए-माज़ी पे पछताया नहीं जाता
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Anees Ahmad Anees
तिरे गेसुओं के साए में जो एक पल रहा हूँ
अभी तक है याद मुझ को अभी तक बहल रहा हूँ

मैं वो रिंद-ए-नौ नहीं हूँ जो ज़रा सी पी के बहकूँ
अभी और और साक़ी कि मैं फिर सँभल रहा हूँ

नहीं ग़म न मिल सकेगी मुझे शैख़ तेरी जन्नत
मुझे आरज़ू नहीं है न मैं हाथ मल रहा हूँ

जो न मेरे काम आए जो न मेरी बात माने
मैं वो दिल बदल रहा हूँ मैं वो दिल बदल रहा हूँ

मुझे जादा-ए-तलब में रह-ए-पुर-ख़तर का क्या ग़म
कि क़दम जिधर उठे हैं उसी सम्त चल रहा हूँ

जो गिरा तो फिर उठूँगा कि जवाँ है अज़्म मेरा
मुझे तुम न दो सहारा मैं अगर फिसल रहा हूँ

वो दबा के मेरा दामन वो झुका के उन की नज़रें
नहीं भूलता ये कहना अभी मैं भी चल रहा हूँ
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Anees Ahmad Anees