Chandra Parkash Shad

Chandra Parkash Shad

@chandra-parkash-shad

Chandra Parkash Shad shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Chandra Parkash Shad's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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  • Ghazal
कैसा वो मौसम था ये तो समझ न पाए हम
शाख़ से जैसे फल टूटे कुछ यूँ लहराए हम

बरसों से इक आहट पर थे कान लगाए हम
आज इस मोड़ पे आप ही अपने सामने आए हम

हम से बिछड़ कर तू ने हम को कैसा दिया है शाप
आईने में अपनी सूरत देख न पाए हम

पेड़ों का धन लूट चुके हैं लूटने वाले लोग
जिस्म पे मल कर बैठे हैं पेड़ों के साए हम

सूरज निगलें चाँदनी उगलें शायद मुमकिन था
लेकिन अपनी इस उम्मीद के काम न आए हम

पर्बत हो या पेड़ घना हो या कोई दीवार
तेरी याद लिए फिरते हैं साए साए हम

गुम होती सी लगती है इस घर की हर इक चीज़
आए हैं बाज़ार से कैसे थके-थकाए हम

अब ये तेरी अपनी ख़ुशी है जो तुझ को रास आए
हम आए तो साथ अपने सब मौसम लाए हम

कौन किसी का होता है ये जानते हैं हम भी
फिर भी सब से मिलते हैं ये बात भुलाए हम

आँख खुली तो सन्नाटे की कोख में थे बे-सुध
कोई अजब आवाज़ थी जिस पर उड़ते आए हम

धरती पर रख दें तो धरती के टुकड़े हो जाएँ
सब्र ओ ग़म का पत्थर हैं सीने से लगाए हम

लम्हा लम्हा टूट रहा है किस की ठोकर से
देखते देखते उजड़ रहे हैं बसे-बसाए हम

किस का चेहरा उभर रहा है दिल के मशरिक़ से
दिशा दिशा में घूम रहे हैं हाथ बढ़ाए हम

गाह कोई चट्टान जहाँ पर वक़्त की चाप थमे
गाह बने बहता हुआ पल और हाथ न आए हम
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Chandra Parkash Shad
सभी सम्तों को ठुकरा कर उड़ी जाए
कहाँ तक जाने गर्द-ए-गुम-रही जाए

बचा कर अपने साए को कहाँ रख्खूँ
कि शब तो हर तरफ़ को फैलती जाए

कोई दीवार है तेरी समाअत भी
कि जो आवाज़ आए लौटती जाए

न पहरों लिख सकूँ मैं कोई बात अपनी
अजब सी गर्द काग़ज़ पर जमी जाए

अचानक टूट जाए क़स्र-ए-तन्हाई
कोई आवाज़ खिड़की खोलती जाए

सुना है मैं सदाओं का समुंदर हूँ
ये सन्नाटा कहीं मुझ को न पी जाए

वहाँ बसने की ख़्वाहिश मुँह तके मेरा
इमारत बनते बनते टूटती जाए

उभरते जाएँ रंगों के खुले मंज़र
मगर बे-फ़ुर्सती आँखों को सी जाए

यूँ ही खपते न जाएँ रोज़-ओ-शब में हम
कभी तो बात बे-मौसम भी की जाए

ये तुम किस के लिए जलते हो गोशों में
चलो छत पर सड़क तक रौशनी जाए
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