Jelani Kamran

Jelani Kamran

@jelani-kamran

Jelani Kamran shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Jelani Kamran's shayari and don't forget to save your favorite ones.

Followers

0

Content

7

Likes

0

Shayari
Audios
  • Nazm
मेरे हाथ पे लिक्खा क्या है
उम्र के ऊपर बर्क़ का गहरा साया क्या है
कौन ख़फ़ा है
राह का बूढ़ा पेड़ झुका है चिड़ियाँ हैं चुप-चाप
आती जाती रुत के बदले गर्द की गहरी छाप
गर्द के पीछे आने वाले दौर की धीमी थाप
रस्ता क्या है मंज़िल क्या है
मेरे साथ सफ़र पर आते-जाते लोगो महशर क्या है
माज़ी हाल का बदला बदला मंज़र क्या है
मैं और तू क्या चीज़ हैं तिनके पत्ते एक निशान
अक्स के अंदर टुकड़े टुकड़े ज़ाहिर में इंसान
कब के ढूँड रहे हैं हम सब अपना नख़लिस्तान
नाक़ा क्या है महमिल क्या है
शहर से आते-जाते लोगो देखो राह से कौन गया है
जलते काग़ज़ की ख़ुश्बू में ग़र्क़ फ़ज़ा है
चारों सम्त से लोग बढ़े हैं ऊँचे शहर के पास
आज अँधेरी रात में अपना कौन है राह-शनास
ख़्वाब की हर ता'बीर में गुम है अच्छी शय की आस
दिन क्या शय है साया क्या है
घटते-बढ़ते चाँद के अंदर दुनिया क्या है
फ़र्श पे गिर कर दिल का शीशा टूट गया है
Read Full
Jelani Kamran
0 Likes
तिरे दरख़्तों की टहनियों पर बहार उतरे
तिरी गुज़रगाहें नेक राहों की मंज़िलें हों
मिरा ज़माना नए नए मौसमों की ख़ुश्बू
तिरे शब-ओ-रोज़ की महक हो
ज़मीन पर जब भी रात फैले
किरन जो ज़ुल्मत को रौशनी दे तिरी किरन हो
परिंदे उड़ते हुए परिंदे
हज़ार सम्तों से तेरे बाग़ों में चहचहाएँ
वो रात जिस की सहर नहीं है
वो तेरे शहरों से तेरे क़स्बों से दूर गुज़रे
वो हाथ जो अज़्मतों के हिज्जे मिटा रहा है
वो हाथ लौह-ओ-क़लम के शजरे से टूट जाए
कलस पे लफ़्ज़ों के फूल बरसें
तिरी फ़सीलों के बुर्ज दुनिया में जगमगाएँ
अकेले-पन की सज़ा में दिन काटते हज़ारों
तिरी ज़ियारत-गहों की बख़्शिश से ताज़ा-दम हों
तिरे मुक़द्दर की बादशाहत ज़मीं पे निखरे
नए ज़माने की इब्तिदा तेरे नाम से हो
ख़ुशी के चेहरे पे वस्ल का अब्र तैर जाए
तमाम दुनिया में तज़्किरे तेरे फैल जाएँ
Read Full
Jelani Kamran
0 Likes
कल रात वो आसमानों से उतरा बहुत ख़ुश हुआ
बहुत ख़ुश हुआ जैसे गहरे समुंदर
ग़ज़बनाकियों में उछलते हैं या आसमाँ पर फ़रिश्ते
क़ुबूल-ए-इबादत पे मसरूर होते हैं

उस ने कहा मैं ने जो कुछ कहा था वो पूरा हुआ
जो मैं देखता था वो मैं देखता था
जो वो देखता था वो शीशे में ख़ुद उस का अपना ही चेहरा था
ज़ाहिर न मख़्फ़ी न वाज़ेह
फ़क़त एक मुमकिन कि होता न होता

उस ने ये देख कर
अपनी हर कामयाबी की फ़िहरिस्त तरतीब दी और
आख़िर में लिक्खा ज़मीन पर ख़ुदा की तवक़्क़ो
न पूरी हुई थी न पूरी हुई है
जिसे हम ने आदम कहा था वो मिट्टी का बे-कार बे-अस्ल धोका था
धोका ही साबित हुआ
उस से कुछ न हुआ
फ़ज़ाओं में नीली हवाओं में दोज़ख़ में जन्नत में
अक़्वाम-ए-आलम की महफ़िल-सराओं में
उस बे-नवा का तमस्ख़ुर उड़ा
जिसे मैं ने बर-वक़्त रोका था
Read Full
Jelani Kamran
0 Likes