Maftun Kotvi

Maftun Kotvi

@maftun-kotvi

Maftun Kotvi shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Maftun Kotvi's shayari and don't forget to save your favorite ones.

Followers

0

Content

2

Likes

4

Shayari
Audios
  • Nazm
"पंद्रह अगस्त"
ख़ुशियों के गीत गाओ कि पंद्रह अगस्त है
सब मिल के मुस्कुराओ कि पंद्रह अगस्त है

हर सम्त क़हक़हे हैं चराग़ाँ है हर तरफ़
तुम ख़ुद भी जगमगाओ कि पंद्रह अगस्त है

हर गोशा-ए-वतन को निखारो सँवार दो
महकाओ लहलहाओ कि पंद्रह अगस्त है

आज़ादी-ए-वतन पे हुए हैं कई निसार
ख़ातिर में इन को लाओ कि पंद्रह अगस्त है

रक्खो न सिर्फ़ ख़ंदा-ए-गुल हैं निगाह में
काँटों को भी हँसाओ कि पंद्रह अगस्त है

रूहें अमान-ओ-अम्न की प्यासी हैं आज भी
प्यास इन की अब बुझाओ कि पंद्रह अगस्त है

शम्अ' ख़ुलूस-ओ-उन्स की मद्धम है रौशनी
लौ और कुछ बढ़ाओ कि पंद्रह अगस्त है

ये अहद तुम करो कि फ़सादात फिर न हों
हाँ आग ये बुझाओ कि पंद्रह अगस्त है

खाओ क़सम कि ख़ून पिलाएँगे मुल्क को
दिल से क़सम ये खाओ कि पंद्रह अगस्त है

हर हादसे में अहल-ए-वतन मुस्तइद रहें
वो वलवला जगाओ कि पंद्रह अगस्त है

ऊँचा रहे शराफ़त-ओ-अख़्लाक़ का अलम
परचम बुलंद उठाओ कि पंद्रह अगस्त है

हो दर्द-ए-दिल में जज़्बा-ए-हुब्ब-ए-वतन फ़ुज़ूँ
'मफ़्तूँ' क़लम उठाओ कि पंद्रह अगस्त है
Read Full
Maftun Kotvi
4 Likes
न थे शाइ'र ही कुछ बड़े ग़ालिब
दिल-लगी में भी ख़ूब थे ग़ालिब
ख़ूब हँसते हँसाते रहते थे
बड़ी पुर-लुत्फ़ बात कहते थे
आम उन को पसंद थे बेहद
या'नी रसिया थे आम के बेहद
ख़ुद भी बाज़ार से मंगाते थे
दोस्त भी आम उन को भिजवाते
फिर भी आमों से जी न भरता था
आम का शौक़ उन को इतना था
उन के क़िस्से तुम्हें सुनाएँ हम
उन की बातों से कुछ हँसाएँ हम
एक महफ़िल में वो भी बैठे थे
लोग आमों का ज़िक्र करते थे
आम ऐसा हो आम वैसा हो
पूछा ग़ालिब से आम कैसा हो
बोले ग़ालिब कि पूछते हो अगर
सिर्फ़ दो ख़ूबियों पे रखिए नज़र
बात पहली ये है कि मीठा हो
दूसरी बात ये बहुत सा हो
एक दिन दोस्त उन के घर आए
आम ग़ालिब ने थे बहुत खाए
सामने घर के थे पड़े छिलके
उस गली में से कुछ गधे गुज़रे
उन गधों ने न छिलके वो खाए
सूँघ कर उन को बढ़ गए आगे
दोस्त ने जब ये माजरा देखा
सोचा ग़ालिब को अब है समझाना
दोस्त बोले है शय बुरी सी आम
देखो खाते नहीं गधे भी आम
हँस के ग़ालिब ये दोस्त से बोले
जी हाँ बे-शक गधे नहीं खाते
बादशह कर रहे थे सैर-ए-बाग़
ख़ुश था आमों से उन का क़ल्ब-ओ-दिमाग़
बादशह के थे साथ ग़ालिब भी
डालते थे नज़र वो ललचाई
जी में ये था कि ख़ूब खाएँ आम
बादशह से जो आज पाएँ आम
घूरते थे जो ग़ालिब आमों को
बादशह बोले घूरते क्या हो
बादशह से ये बोले वो हँस कर
मुहर होती है दाने दाने पर
देखता हूँ यूँ घूर कर मैं आम
शायद उन पर लिखा हो मेरा नाम
मक़्सद उन का जो बादशह पाए
फिर बहुत आम उन को भिजवाए
Read Full
Maftun Kotvi
0 Likes