ज़रा से हम ही बेकल हो गए हैं
सभी ग़म वरना ओझल हो गए हैं
जहाँ पैवंदकारी की थी तू ने
वो दिल वीरान जंगल हो गए हैं
हमारा मसअला ही मसअला है
मसाइल साथ के हल हो गए हैं
तेरे गाओं के मुर्दा दिल बसा कर
हमारे शहर बोझल हो गए हैं
उसे इक लम्हे की फ़ुर्सत मिली है
मेरे दिन रात इक पल हो गए हैं
बड़ी ताख़ीर से हम मुस्कुराए
कहा था उस ने पागल हो गए हैं
शजरकारी तेरी यादों में की है
हमारे पेड़ संदल हो गए हैं
वहाँ दरवाज़ा उसने दिल का खोला
यहाँ रस्ते मुअत्तल हो गए हैं
तेरे कूचे से गुज़रे थे मुसाफ़िर
सुना है पाँव मख़मल हो गए हैं
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