Baldev Raaj

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Baldev Raaj shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Baldev Raaj's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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  • Ghazal
आज है ईसार का जज़्बा जो परवानों के पास
थी कभी ये दौलत-ए-बेदार इंसानों के पास

अक़्ल है इक आस्तीं का साँप फ़र्ज़ानों के पास
बे-ख़ुदी कितनी बड़ी दौलत है दीवानों के पास

किस की है दुनिया ये आख़िर साहब-ए-ख़ाना है कौन
मेज़बाँ देखा नहीं कोई भी मेहमानों के पास

अज़्मत-ए-दीवानगी का शोर फ़र्ज़ानों में है
है ग़नीमत ये भी रह जाए जो दीवानों के पास

शम्अ' रौशन हो गई आ जाओ जलने के लिए
ये ख़बर जाता है ले कर कौन परवानों के पास

गाहे आबादी के सीने तक चले आते हैं दश्त
गाहे आबादी पहुँच जाती है वीरानों के पास

अश्क-ए-हसरत सोज़-ए-ग़म दर्द-ए-मोहब्बत दाग़-ए-दिल
क्या नहीं सब कुछ है तेरे ख़स्ता सामानों के पास

तुम न गर आते तो खिंच जाते सनम-ख़ाने वहीं
तुम ने ख़ुद तौहीन की आ कर सनम-ख़ानों के पास

नाख़ुदा कश्ती के रुख़ को मोड़ लंगर काट दे
मुझ को साहिल सा नज़र आता है तूफ़ानों के पास

देखें अब बेगाने करते हैं इशारा किस तरफ़
मुझ को अपनों ने तो पहुँचाया है बेगानों के पास

'राज' जाने किस तरह करते हैं सज्दे बरहमन
मैं तो बन जाता हूँ बुत जा कर सनम-ख़ानों के पास
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Baldev Raaj
बहुत पछताओगे तुम दर्द-मंदों से ख़फ़ा हो कर
कि गुल मुरझा के रह जाता है ख़ारों से जुदा हो कर

कहाँ जाना था मुझ को और कहाँ ला कर किया रुस्वा
निगाह-ए-शौक़ ने धोका दिया है रहनुमा हो कर

सितम कीजे जफ़ा कीजे मगर इंसाफ़ से कहिए
ये नाराज़ी भला ज़ेबा है बंदे से ख़ुदा हो कर

बहारें जा रही थीं जब ख़िज़ाँ के साथ गुलशन से
गुलों की आँख में भर आए आँसू इल्तिजा हो कर

ज़माना गर क़यामत भी उठाता है उठाने दो
मगर उठ कर न जाओ मेरे पहलू से ख़फ़ा हो कर

ख़याल-ए-दोस्त ख़िज़्र-ए-राह है दश्त-ए-मोहब्बत में
जुनूँ हमराह ले जाता रहा है रहनुमा हो कर

ख़ुदारा रहम कर पैमान-ए-उल्फ़त बाँधने वाले
कहाँ जाऊँगा मैं आख़िर तिरे ग़म से रिहा हो कर

न बन जाए तुम्हारी ज़िंदगी का आसरा कोई
न इतराओ किसी की ज़िंदगी का आसरा हो कर

मुझे तूफ़ान ले जाता जहाँ मेरा मुक़द्दर था
डुबोया है मिरी कश्ती को तुम ने नाख़ुदा हो कर

हमारी देखा-देखी तुम वफ़ाओं पर न आ जाना
ज़माने से हमें क्या मिल रहा है बा-वफ़ा हो कर

बयाँ क्या हाल-ए-दिल हो जब मोहब्बत का ये आलम है
शिकायत भी मिरे होंटों पे आती है दुआ हो कर

अजब दस्तूर है ऐ 'राज' दुनिया-ए-मोहब्बत का
जफ़ाएँ सामने आईं वफ़ाओं की सज़ा हो कर
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Baldev Raaj
हयात-ए-उल्फ़त की चाँदनी में मसर्रतों की कमी नहीं है
मगर मुक़द्दर को क्या करूँ मैं नज़र वो पहली जो थी नहीं है

वो इब्तिदा इश्क़ की थी हम को गिला था जब दर्द-ए-बे-कसी का
मगर शबाब-ए-जुनूँ तो देखो शिकायत-ए-बे-रुख़ी नहीं है

तिरी मोहब्बत है ज़हर शीरीं तिरी वफ़ाएँ हसीन धोके
है लाख दुश्मन अगरचे दुनिया मगर ये तुझ से बुरी नहीं है

हज़ारों तूफ़ाँ से इश्क़ खेले हज़ार दिल में हुजूम-ए-ग़म हो
मगर फ़रेब-ए-वफ़ा जो खाए वो ज़िंदगी ज़िंदगी नहीं है

कमाल-ए-इश्क़-ओ-वफ़ा के परतव जहाँ-तहाँ जगमगा रहे हैं
ये सब फ़रेब-ए-निगाह-ओ-दिल है किसी में कुछ दिलकशी नहीं है

वो और होंगे ऐश-ए-दुनिया की आरज़ूओं में मर रहे हैं
वो चीज़ मैं क्यों पसंद कर लूँ जो हासिल-ए-बंदगी नहीं है

तिरी वफ़ाओं के आसरे पर हद-ए-तसव्वुर से बढ़ गया हूँ
मक़ाम ऐसा अब आ गया है तिरी कमी भी कमी नहीं

जवान है अब मिरी मोहब्बत शबाब पर हैं मिरी दुआएँ
है मौक़ा'-ए-ख़ुद-कुशी तो ऐ 'राज' हिम्मत-ए-ख़ुद-कुशी नहीं है
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गर्दिश में है ज़मीन भी क्या आसमाँ के साथ
दुनिया बदल गई निगह-ए-मेहरबाँ के साथ

दोहराना अंजुमन में समझ सोच के उसे
तेरी भी दास्ताँ है मिरी दास्ताँ के साथ

अब मैं हूँ और कुंज-ए-क़फ़स की मुसीबतें
वो आशियाँ की बात गई आशियाँ के साथ

बेताबियों से रब्त था बेचैनियों से काम
गुज़रे हैं ऐसे दिन भी उस आराम-जाँ के साथ

रोज़-ए-अज़ल वही तो फ़क़त मुस्तहिक़ न था
कुछ गर्दिशें हमें भी मिलीं आसमाँ के साथ

ग़म को तिरे भुला न सका दो-जहाँ का ग़म
तेरा भी ग़म रहा है ग़म-ए-दो-जहाँ के साथ

उम्मीद ही नहीं तो गुज़र जाएगी यूँही
इक मेहरबाँ के साथ कि ना-मेहरबाँ के साथ

ये सोज़-ओ-साज़-ए-इश्क़ ग़म-ए-जावेदाँ सही
दे उम्र-ए-जावेदाँ भी ग़म-ए-जावेदाँ के साथ

मंज़िल का क्या यक़ीं हो बताए कोई मुझे
जब रहगुज़ार भी है रवाँ कारवाँ के साथ
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Baldev Raaj
अब मिरी निगाहों में औज है न पस्ती है
एक सैल-ए-मद-होशी इक हुजूम-ए-मस्ती है

ऐ निगाह-ए-ना-महरम इश्क़ की वो बस्ती है
जिस क़दर उजड़ती है उस क़दर ही बस्ती है

आशिक़ी-ओ-महबूबी आइने के दो रुख़ हैं
हुस्न एक बादा है इश्क़ एक मस्ती है

जज़्बा-ए-इबादत को रख जज़ा से बेगाना
वर्ना हक़-परस्ती भी इक हवस-परस्ती है

दिल की पाएमाली का ग़म तो कुछ नहीं लेकिन
ऐसी पुर-फ़ज़ा बस्ती मुश्किलों से बस्ती है

दीदा-वर कोई देखे शान-ए-पीर-ए-मय-ख़ाना
इस ख़ुदी के चेहरे से बे-ख़ुदी बरसती है

हिम्मतों के बल उट्ठो ख़ुद-रवी के बल निकलो
लग़्ज़िशों के बल चलना नंग-ए-मय-परस्ती है

आदमी के चेहरे पर बंदगी नहीं रहती
वर्ना ख़ुद-परस्ती भी इक ख़ुदा-परस्ती है
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Baldev Raaj
ख़िज़ाँ का कोई वजूद है न चमन में रंग-ए-बहार है
जिसे जानता है तू कारवाँ वो तिरी नज़र का ग़ुबार है

न जमाल में हैं लताफ़तें न लताफ़तों में है बे-ख़ुदी
ये जुनून-ए-इश्क़ का भूत है जो बशर के सर पे सवार है

मुझे बे-नियाज़-ए-अलम न कर मुझे बे-नसीब-ए-सितम न कर
मिरे ग़म की लज़्ज़त-ए-जावेदाँ मिरी ज़िंदगी की बहार है

ये नहीं नशात का ज़मज़मा इसे गोश-ए-होश से सुन ज़रा
मिरे साज़-ए-दिल की सदा नहीं मिरी बे-कसी की पुकार है

मुझे ज़िंदगी की दुआ न दे मुझे ऐसी सख़्त सज़ा न दे
मुझे देख आ के क़रीब-तर मिरा हर नफ़स मुझे बार है

है ख़बर असीर रिहा हुए हैं फ़रोग़ दौर-ए-बहार में
चलो 'राज' हम भी चले चलें कि चमन में उर्स-ए-बहार है
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Baldev Raaj
मेरे अरमानों को पामाल-ए-ज़ियाँ रहने भी दे
शौक़-ए-मंज़िल को शरीक-ए-कारवाँ रहने भी दे

वा'दा-ओ-पैमान-ए-उल्फ़त को न दे लफ़्ज़ों का रंग
दर्द से लबरेज़ नालों को जवाँ रहने भी दे

देख मुझ को हसरत-आलूदा निगाहों से न देख
ये फ़ुसूँ ये शोख़ अंदाज़-ए-बयाँ रहने भी दे

हाइल-ए-उल्फ़त अगर है ज़िंदगी की कश्मकश
ज़िंदगी की कश्मकश को दरमियाँ रहने भी दे

मैं जहाँ हूँ जिस तरह हूँ ख़ूब हूँ दिल-शाद हूँ
हासिल-ए-उल्फ़त हैं ये बर्बादियाँ रहने भी दे

वो गुज़िश्ता ऐश-ओ-इशरत वो नशात-ए-ज़िंदगी
ख़्वाब था इस ख़्वाब की रंगीनियाँ रहने भी दे

दोस्त मजबूर-ए-वफ़ा हो कर न खा दिल का फ़रेब
ज़िंदगी पर कामरानी का गुमाँ रहने भी दे

नक़्श-ए-ग़म को क्यों मिटाती है दिल-ए-ग़मगीन से
ये मिरी ख़ूनीं बहारें बे-ख़िज़ाँ रहने भी दे
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Baldev Raaj
मैं जी रहा हूँ तेरा सहारा लिए बग़ैर
ये ज़हर पी रहा हूँ गवारा किए बग़ैर

बिकता न काश इश्क़ की क़ीमत लिए बग़ैर
मैं उन का हो गया उन्हें अपना किए बग़ैर

वाक़िफ़ तो हूँ वफ़ा के नतीजे से हम-नशीं
बनती नहीं है उन पे भरोसा किए बग़ैर

क्या ज़िंदगी है अहल-ए-गुलिस्ताँ की ज़िंदगी
गुल हँस रहे हैं चाक-ए-गरेबाँ सिए बग़ैर

दिन-रात हम ने ग़म की हिफ़ाज़त तो की मगर
दुनिया न रह सकी हमें रुस्वा किए बग़ैर

मरने की आरज़ू मुझे मुद्दत से है मगर
लेकिन ये काम हो नहीं सकता जिए बग़ैर

उन की निगाह-ए-मस्त के सदक़े में मुद्दतों
इक बे-ख़ुदी का दौर रहा है पिए बग़ैर

बर्क़-ए-चमन हुदूद-ए-चमन से निकल के देख
तारीक एक और भी घर है दिए बग़ैर

ऐ 'राज' रास आ न सकी महफ़िल-ए-हयात
हम आ गए थे किस की इजाज़त लिए बग़ैर
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Baldev Raaj
फ़िक्र-ओ-ख़याल में तुम्हें लाने से फ़ाएदा
ख़ुद अपने घर में आग लगाने से फ़ाएदा

बैठे बिठाए जी को जलाने से फ़ाएदा
तामीर-ए-ज़िंदगी को मिटाने से फ़ाएदा

फ़रियाद-ओ-आह नाला-ओ-शेवन फ़ुज़ूल हैं
शब की ख़मोशियों को जगाने से फ़ाएदा

पामाल हो चुके हैं ये अंदाज़-ए-आशिक़ी
यूँ सर किसी के दर पे झुकाने से फ़ाएदा

अच्छा नहीं है इश्क़ में ख़ुद्दारियों का ख़ून
जो ख़ुद न आए उस को बुलाने से फ़ाएदा

इश्क़ और ख़याल-ए-ता'न-ए-ज़माना ग़लत ग़लत
आख़िर बताओ हम को ज़माने से फ़ाएदा

अश्कों में बह चुकी है निगाह-ए-जमाल जो
अब बे-नक़ाब सामने आने से फ़ाएदा

गर जावेदाँ नहीं है मोहब्बत तो ऐ नदीम
ये ख़्वाब-ए-ज़र-निगार दिखाने से फ़ाएदा

बहर-ए-सुकूँ में डूब गई मौज-ए-इज़्तिराब
साहिल पे ग़म का सोग मनाने से फ़ाएदा

मैं बेवफ़ा हूँ तुम हो वफ़ादार हाँ दुरुस्त
ऐ 'राज' और बात बढ़ाने से फ़ाएदा
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Baldev Raaj
ख़ुद को ख़ुदी का आइना दिखला रहा हूँ मैं
अपना हरीफ़ आप बना जा रहा हूँ मैं

क़िस्मत की पस्तियों की हदें ख़त्म हो चुकीं
अब रिफ़अ'तों की सम्त उड़ा जा रहा हूँ मैं

नाकाम-ए-आरज़ू हूँ मगर उफ़ यक़ीन-ए-इश्क़
दानिस्ता फिर फ़रेब-ए-वफ़ा खा रहा हूँ

मोहर-ए-सुकूत-ए-लब पे है बहके हुए क़दम
ऐ बे-ख़ुदी फिर आज किधर जा रहा हूँ मैं

फिर देखता हूँ चेहरा-ए-माज़ी के ख़द्द-ओ-ख़ाल
साक़ी सँभाल होश में फिर आ रहा हूँ मैं

रुक जाए जिस के शोर से दश्त-ओ-जबल की साँस
उस सैल-ए-रंज-ओ-ग़म में बहा जा रहा हूँ मैं

जाने को हूँ अहाता-ए-आलम से दूर-तर
बस चंद रोज़ तुम को नज़र आ रहा हूँ मैं

शम्स-ओ-क़मर हैं राह में ज़र्रात की तरह
किस की तजल्लियों में घिरा जा रहा हूँ मैं

था जो ख़याल तेरी जफ़ाओं से पेशतर
दिल को उसी ख़याल से बहला रहा हूँ मैं

बढ़ बढ़ के 'राज' मेरे क़दम ले रही है मौत
किस ज़िंदगी की सम्त बढ़ा जा रहा हूँ मैं
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