कैसे कह दूँ तनहाँ हूँ वो अब तक मुझे रुलाती है
आँखो में आँसू भरकर वो आठो पहर बुलाती है
सदीयों पहले छोड़ चुका हूँ दामन फिर भी जाने क्यूँ
मेरे चादर से अब तक उस शख़्स की ख़ुशबू आती है
पहले पहल तो मेरी हर एक बातें काटा करती थीं
अब जो मैं दो चार भी बोलूँ सारी मानी जाती हैं
दुश्मन नही दोस्त से डरना आने वाली दुनिया में
खाने के उद्देस्या से ही तो बकरी पाली जाती है
पानी जैसे काट रहा है पत्थर को आहिस्ता से
शेरों की बारीकी भी कुछ ऐसे जानी जाती है
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