तुम्हारी यार हसरत ने मुझे ज़िन्दा रखा
तुम्हारी ही मुहब्बत ने मुझे ज़िन्दा रखा
समझदारी ने कब का मार डाला था मुझे
मगर मेरी हिमाक़त ने मुझे ज़िन्दा रखा
कि दिल में दोस्त हैबत मौत की बैठी हुई
मगर इस दिल की हैबत ने मुझे ज़िन्दा रखा
मुझे तो दोस्तो की दोस्ती ने मारा है
कि दुश्मन की अदावत ने मुझे ज़िन्दा रखा
मुझे हैरत कि तन्हाई में भी ज़िन्दा रहा
मगर इस एक हैरत ने मुझे ज़िन्दा रखा
मुहब्बत इंतिज़ार-ओ-वस्ल-ओ-तन्हाई फ़िराक़
यहाँ हर एक वहशत ने मुझे ज़िन्दा रखा
उजाले सुब्ह तो क़ातिल लगे अपने मुझे
अँधेरी रात ज़ुल्मत ने मुझे ज़िन्दा रखा
मुझे मारा कि तेरी यार आदत ने मगर
तिरी ही यार आदत ने मुझे ज़िन्दा रखा
मुझे तो मार डाला था फ़साने में किसी
मगर मेरी हक़ीक़त ने मुझे ज़िन्दा रखा
हक़ीक़त बात तो ये है सुनो मेरे अज़ीज़
ख़ुदा की ही इनायत ने मुझे ज़िन्दा रखा
As you were reading Shayari by Azhan 'Aajiz'
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