रह कर ज़मीं पे जब ख़्वाब आसमाँ का रखना
दिल में उड़ान का अपने तुम जज़्बा रखना
पत्थर कभी तुम्हें बंदिशें मिलेंगी लेकिन
पैहम मुसाफ़िरो कारवाँ हमेशा रखना
ऊँचाइयों तलक लाख तुम चले जाना पर
जब भी मिलो बुज़ुर्गो से सर नीचा रखना
मैं ढूँढ़ते हुए रौशनी कभी आ जाऊँ
मेरे भी नाम का तुम चराग़ जलता रखना
इसकी तरफ़ गया हो गया वही बेगाना
'आरिज़ अज़ीज़' दुनिया से फ़ासला सा रखना
आ कर ग़ुरूर में लोग गिर गए मुँह के बल
अपना ग़ुरूर के साथ कुछ न रिश्ता रखना
बेशक़ बिछड़ रहे हैं हम आज यारो लेकिन
सब याद में मगर अपना आना जाना रखना
भटका हुआ मुसाफ़िर वो लौट आए शायद
घर का खुला हुआ इक तुम दरवाज़ा रखना
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