कभी तन्हा मिले तो बात हो उससे
ज़रा मौक़ा मिले तो बात हो उससे
कि हाले-दिल कहूँ किससे यहाँ मैं अब
भला अपना मिले तो बात हो उससे
दिखाई है सियासत जिस तरह उसनें
मुझे सत्ता मिले तो बात हो उससे
पसंदीदा नहीं कोई मिरा यारो
पसंदीदा मिले तो बात हो उससे
मुझे तो प्यास है यारो मुहब्बत की
समन्दर सा मिले तो बात हो उससे
मैं आ जाता हूँ जल्दी क्लास में लेकिन
वो मौजूदा मिले तो बात हो उससे
मिरी ना-क़ामयाबी पर हँसा है जो
मुझे रुतबा मिले तो बात हो उससे
मुझे समझे मुझे जाने कि मेरा हो
कभी ऐसा मिले तो बात हो उससे
बुरे मिलते रहे हैं उम्र भर मुझको
कि अब अच्छा मिले तो बात हो उससे
खिलाया है मुझे तीखा सदा उसनें
कि अब मीठा मिले तो बात हो उससे
मुझे तोड़ा है उसने जिस तरह 'आरिज़'
वो गर टूटा मिले तो बात हो उससे
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