किसी का दिल भी तोड़ना यहाँ बना सवाब है
मियाँ जहाँ में इश्क़ अब हुआ बड़ा ख़राब है
नहीं बचा मेरे मकाँ में कुछ तो क्या असर हुआ
अभी मैं हूँ मुझे बचाने को मेरी शराब है
जो शख़्स ख़ुद गिना रहा है अपने ऐब रात दिन
उसे ख़बर नहीं कि वो मेरे लिए नवाब है
कभी मरे तो किस तरफ़ कहाँ पे मिल सकेंगे हम
नहीं पता किसी को भी कि इसका क्या जवाब है
चुभे हैं जिस के काँटें मुझ को खाल से ज़बान तक
मैं क्या कहूँ वो उस का ही दिया हुआ गुलाब है
वो कौन था जो बचपना मुझी से ले गया मेरा
बची रही जो मुझ में वो अदा खुली किताब है
मेरे लिए वफ़ा से बढ़ के कुछ नहीं ज़ीस्त में
मेरा ये फ़न मेरे ही वास्ते बना अज़ाब है
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