खुदाया एक दुनिया ऐसी भी निर्मित करो तुम
ज़बाँ पशुओं को मानव की तरह अर्पित करो तुम
नहीं हर बार माफ़ी हक़ में आएगी सभी के
दुखाए जो तुम्हारा दिल उसे शापित करो तुम
जहाँ से जो मिले उसको समेटो और समा लो
हवा से चाल सूरज से चमक अर्जित करो तुम
तुम्हारा जो करे सत्कार उसका मान रखना
नहीं वाजिब सभी के साथ में जनहित करो तुम
जिसे दिखती तुम्हारी देह बस ओछी नज़र से
धतूरा है नज़र उसकी यही कल्पित करो तुम
तुम्हारी रूह चट्टानों से भी मज़बूत है दोस्त
कभी ये बात अपने आपको साबित करो तुम
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