काश कोई ख़्वाब ऐसा मौत होने तक न आता
नींद में जाना जिसे था मेरे सोने तक न आता
जान मेरी ज़िन्दगी तेरे बिना क्या ख़ाक होती
प्यार करना भी तेरा वो प्यार खोने तक न आता
ज़ोर दे कर जब कहा था मान लेते बात मेरी
भूल जाते तुम मुझे मैं याद रोने तक न आता
मैं यहाँ तक आ गया हूँ तब मुझे काँधा मिला है
मैं वहीं मरता कोई पलकें भिगोने तक न आता
नाम पत्थर का नहीं था तो नदी नाली बनी थी
आज पूजा कर रहा कल पा डुबोने तक न आता
मान जाता मैं कि तुमने फ़ासलों से है वफ़ा की
काश आँखों से निकल कर अश्क कोने तक न आता
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