शौक़ से देखी क़यामत चार दिन की ज़िंदगी में
यानी बस झूठी मुहब्बत चार दिन की ज़िंदगी में
लोग गाली दे रहे हैं और गुर्बत रोज़ तानें
झेल ली हमने फ़ज़ीहत चार दिन की ज़िंदगी में
इश्क़ पैसा घर ज़रओज़ेवर कि गाड़ी नाम रुतबा
यार क्याक्या है ज़रूरत चार दिन की ज़िंदगी में
कामकाजी मसअले से जो मिले फ़ुर्सत कभी तो
कीजिए उसकी इबादत चार दिन की ज़िंदगी में
चार दिन तो थें कि रहना था गले मिलकर हमें पर
हम कि कर बैठें अदावत चार दिन की ज़िंदगी में
एक जानिब है कहानी फ़िल्म यानी झूठ ही झूठ
दूसरी जानिब हक़ीक़त चार दिन की ज़िंदगी में
As you were reading Shayari by Janib Vishal
our suggestion based on Janib Vishal
As you were reading undefined Shayari