इश्क़ इमाम है मेरा क्यों मुरीद रक्खा है
क्या है तुम में ऐसा जो सब ख़रीद रक्खा है
है न इश्क़ की चाहत या न ही ज़रूरत अब
क्यूँ न जाने 'काफ़िर' को यूँ वदीद रक्खा है
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