हयात क्या है कि वहम-ओ-गुमान में गुज़री

  - Naaz ishq

हयात क्या है कि वहम-ओ-गुमान में गुज़री
मुझे ख़बर ही नहीं क्या जहान में गुज़री

तमाम उम्र की सोहबत उस एक शख़्स के साथ
उसी से तर्क-ए-ताल्लुक़ के ध्यान में गुज़री

वफ़ा बहुत थी बहुत बेची ख़ुद गुरेज़ किया
दुकानदार की जैसे दुकान में गुज़री

न दोस्ती थी न इख़्लास था न इश्क़ न ज़ोर
मैं क्या बताऊॅं कि क्या दरमियान में गुज़री

मैं उस के साथ हो कर भी उसे तरसता रहा
तमाम उम्र मेरी इम्तिहान में गुज़री

गुज़र गई बड़ी आसानी से शब-ए-हिज्राँ
बहुत मुशक़्क़तों से दरमियान में गुज़री

अजब सफ़र किया मैंने कि ज़िन्दगी सारी
गए दिनों की कसक और थकान में गुज़री

ख़ुशी में 'नाज़' रहा क़हक़हों का शोर बहुत
उदास उदास जो भी थी अमान में गुज़री

  - Naaz ishq

More by Naaz ishq

As you were reading Shayari by Naaz ishq

Similar Writers

our suggestion based on Naaz ishq

Similar Moods

As you were reading undefined Shayari