"फ़ैज़"

  - Naaz ishq

"फ़ैज़"
मुझे तुम छोड़ कर फिर से न जाना
दोबारा मैं तुम्हें अपना रहा हूॅं
पुरानी मैं सभी बातें भुला दूॅंगा
तुम्हें सब याद है या फ़िर नहीं है क्या पता लेकिन
मुझे सब याद है मैंने यही सब कुछ कहा था
मगर तुमने किया क्या जो तुम्हें करना था

तुम उस बरसात के जैसी हो
हमेशा जो ग़लत मिक़दार में होती है
कभी ज़्यादा कभी कम और बे-मौसम
फ़क़त मिट्टी भिगोने के लिए

न जाने अब मुझे क्या हो गया है
फ़ज़ाओ में कहानी सी नज़र आती है अब
हर इक वो चीज़ जो मैं देखता हूँ
हमारी ही कहानी लगती है सब , वो नदी देखो
तुम्हें लगता नहीं मैं वो नदी हूॅं और वो बादल तुम

नदी सूखी हुई बादल भरे
नदी है मुंतज़िर बरसात की
मगर बादल गुज़र जाएगे
दोबारा लौट कर आएगे
मगर फ़िर से वही होगा

यही होता है मेरे साथ भी हर बार

भॅंवर हूॅं मैं किनारे तुम
ख़ला हूॅं मैं नज़ारे तुम
मैं हूॅं पतझड़ बहारें तुम
तुम्हारा मैं हमारे तुम
नहीं ऐसा नहीं है
अलग है हम बहुत
तुम्हें मैं बे सबब ही याद करता रहता हूँ
तुम्हारे पास जब कोई नहीं होता वहॉं मैं

नफ़ा हो तुम ख़सारा मैं
तुम्हीं हो चाँद तारा मैं
मोहब्बत और कोई है
गुज़ारा मैं
दोबारा पास आओगी तुम
सहेगा कौन
दोबारा मैं
सदाए दूॅंगा तुमको मैं पुकारूॅंगा मगर
मेरी ये इल्तिज़ा है तुमसे
मत आना लौट कर

  - Naaz ishq

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