गीत सुनते हैं कोई दिल को लुभाने वाला
नींद तो ले उड़ा है ख़्वाब दिखाने वाला
बिलकुल ऐसे ही तुम्हें प्यार किया था हम ने
जिस तरह रंगों से तस्वीर बनाने वाला
हिज्र में क्या है कि पत्थर हुए जाते हैं हम
ढूॅंढ लाओ वो शब-ओ-रोज़ रुलाने वाला
हाथ जोड़े खड़ा था जो न पसन्द आया उसे
रास आएगा कोई हाथ उठाने वाला
झील सी आँखों की तारीफ़ ही करनी थी बस
काम बेकार किया अश्क उठाने वाला
टूट के बिखरे भी तो ख़ैर कोई बात नहीं
दौर अच्छा था मगर ख़्वाब सजाने वाला
क्या अजब शख़्स है वो तरक- ए-मुहब्बत करके
मुझ में अब ढूॅंढता है दोस्त पुराने वाला
दिल शब-ओ-रोज़ मुझे कहता है लानत है नाज़
कि पशेमाँ भी नहीं छोड़ के जाने वाला
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