आँखों से ग़म के इस दफ़ा आँसू निकालना
तुम इश्क़ में से हिज्र के पहलू निकालना
कोठे पे जाना गर तो मिरे दोस्त इसलिए
औरत के दोनों पैरों से घुँघरू निकालना
जो लोग याँ पे धर्म का ठेका लिए हैं ना
उनमें से इक भी शाज़ है साधू निकालना
उससे वफ़ा निभाने का कहना है यूँ कि जूँ
सूरज के आगे से कोई जुगनू निकालना
उल्फ़त के छल में फाँस लो और धोका दे दो बस
आसाँ है लड़कों में से पढ़ाकू निकालना
गीता पढ़ो तो इसलिए क़ुरआन इसलिए
इंसानों में से मुस्लिम-ओ-हिन्दू निकालना
दिल दे दिया गर उसको तो मुमकिन नहीं है फिर
उसके क़फ़स से प्राण-पखेरू निकालना
जबरन निकालना उसे दिल से मिरे मिलन
ऐसे है जैसे फूल से ख़ुशबू निकालना
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